Thursday 20 June 2019

आखिर कौन है जिम्मेदार मासूमों के मौत का ?


जपानी एन्सेफलाइटिस से बिहार के मुझपहरपुर में अभी तक 112 बच्चों की जान जा चुकी है। बिहार में कितना बहार है और कितना अच्छा दिन है ये  उपरोक्त पंक्ति से पता चल रहा है । यू तो हम कई समस्याओं में राजनीतिक और सामाजिक इक्षाशक्ति का अभाव देखते रहते है लेकिन इस बार तो ये इन्शानियत के हद को पार करते हुए चरम पर पहुच चुकी है । बच्चों की मौत का तेजी से बढ़ता हुआ यह आकड़ा न केवल राज्य के आपदा से निपटने के क्षमताओं पर प्रश्न चिन्हित लगाता हैं बल्कि देश के गरीबों पिछड़ों के प्रति सरकार के सजकता को भी दिखाता है। जहाँ तक इस बीमारी का सवाल है तो यह लाइलाज बीमारी नही है उचित व्यवस्था तथा सही इलाज से इससे निपटा जा सकता है फिर भी मौत कि सांख्य 100 के पार जा चुकी हैं। मीडिया के पड़ताल से जो अस्पताल और स्वास्थ्य विभाग कि लापरवाही सामने आई उसे देखकर लोग दंग है । साथ ही हम सब के मन मे यह सवाल उठता है कि जिस देश मे एक बीमारी सौ से ज्यादा चिराग को बुझा दे और सब देखते रहे उस देश के लोग एक क्रिकेट मैच के जितने पे कैसे गर्व महसूस कर सकता है। एक तरफ हम अंतरिक्ष मे मानव भेज रहे है और दूसरी तरफ देश में रह रहे मानव को बचाने मे असमर्थ है। क्या सौ जान जाने के बाद ही राजनेता तथा मीडिया का ध्यान आकर्षित होता है । क्या सरकार के पास संशाधन की कमी है या मौत के बाद मुआवजा देकर वोटबैंक की राजनीति करना ही सरकार का काम रह गया है। जब देश मे कोई आतंकवादी हमला होता है या कोई देश के वीर सैनिक सहीद होते है तो पूरा देश मे देश भगति उमड़ पड़ती है और होना भी चाहिये लेकिन उन गरीबों पे जो बीमारी का सरकार और समाज के नाकामी का हमला हुआ है उसका चोट आतंकवादी हमले से कम है ? यह घटना हमे बताती है कि हम कितना सुरक्षित है या हम गाय को सुरक्षित करते करते करते मानव की सुरक्षा ही भूल गए  
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